विपरीत राजयोग

त्रिक स्थान के स्वामी (अर्थात छठे/ आठवें/ बारहवें भावों के स्वामी) लग्न कुण्डली के मारक ग्रह होते हुए भी, यह आवश्यक नहीं कि ये ग्रह हमेशा बुरा फल ही दें I

  • छठे/ आठवें/ बारहवें भावों के स्वामी यदि विपरीत राजयोग में हों तो जातक को अच्छा फल देने में सक्षम होते हैं l
  • परिभाषा: विपरीत राज – योग में छठे, आठवें, बारहवें भाव का स्वामी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में ही पड़ें हों तो वें अच्छा फल दे सकते हैं l परन्तु इसके लिए कुण्डली में लग्नेश का बलि और शुभ होना अति आवश्यक है l
  •  छठे, आठवें या बारहवें भाव का स्वामी इन्ही में से किसी भाव में नीच का हो जाए, तो उसे विपरीत राजयोग में नहीं माना जाएगा l

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For Example:

  • वृष लग्न कुण्डली में बृहस्पति देव अष्ठम भाव के स्वामी हैं I यदि बृहस्पति छठे भाव, अष्ठम भाव, या द्वादश भाव में से किसी भी भाव में विराजमान हों तोह बृहस्पति देव विपरीत राजयोग में आ जाते हैं I लेकिन इसके लिए लग्नेश शुक्र देव का बलि तथा शुभ भावों में होना अतिअनिवार्य है I
  • वृष लग्न कुण्डली में बृहस्पति देव मारक ग्रह होते हैं तथा सदैव अशुभ फल देते हैं I यदि बृहस्पति देव विपरीत राजयोग में आ जाएँ तोह यही ग्रह अपनी दशा-अंतरा में शुभ फल भी देता है I

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