सिंह लग्न कुण्डली में ग्रहों के फल

  • सिंह लग्न वाले जातकों की कुण्डली में प्रथम भाव (जिसे लग्न भी कहा जाता है) में सिंह राशि या “5” नम्बर लिखा होता है I नीचे दी गयी जन्म लग्न कुण्डली में दिखाया गया है I

योग कारक ग्रह (शुभ/मित्र ग्रह) :

  1. सूर्य (1st  भाव का स्वामी)
  2. मंगल देव (4th  & 9th भाव का स्वामी)
  3. बृहस्पति  (5th भाव & 8th भाव का स्वामी)
  4. बुध  देव (2nd भाव & 11th भाव का स्वामी)

मारक ग्रह (शत्रु ग्रह) :

  1. शनि देव (6th & 7th भाव का स्वामी)
  2. चन्द्र देव (12th   भाव का स्वामी)

सम ग्रह :

  1. शुक्र देव (3rd  & 10th भाव का स्वामी)

एक योगकारक ग्रह भी अपनी स्थित के अनुसार मारक ग्रह (शत्रु) बन सकता है इसलिए ग्रहों की स्थित देख कर ही योगकारक ग्रह का निर्धारण करें I

सिंह लग्न कुण्डली में सूर्य देवता के फल:

  • लग्नेश होने के कारण सूर्य देवता इस लग्न कुण्डली में सबसे योग करक ग्रह माने जातें है l
  • पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नवम, दशम, एकादश भाव में सूर्य देवता अपनी दशा – अन्तरा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देतें है l
  • तीसरे (नीच ), छठें, आठवें और द्वादश भाव में सूर्य देवता अशुभ हो जातें है l उनका दान और पाठ  करके उनकी अशुभता को कम किया जाता है l
  • शुभ भावों में सूर्य का रत्न माणिक पहन कर सूर्य देवता का बल बढ़ाया जाता है l

सिंह लग्न कुण्डली में बुध देवता के फल:

  • बुध देवता इस लग्न कुण्डली में दूसरे और एकादश भाव के मालिक हैं l लग्नेश सूर्य के अति मित्र होने के कारण बुध देवता इस लग्न कुण्डली में योग करक ग्रह माने जाते हैं l
  • पहले , दूसरे , चौथे , पांचवें , सातवें , नवम , दशम और एकादश भाव में बुध देवता अपनी दशा -अन्तरा में शुभ फल देतें है l
  • तीसरे , छठें , आठवें और 12वें भाव में बुध देवता मारक ग्रह माने जाते हैं l उनका दान-पाठ  करके बुध ग्रह के मारकेत्व को कम किया जाता है l
  • कुण्डली के किसी भी भाव में बुध देव, सूर्य देव के साथ बैठकर अस्त अवस्था में आ जाते हैं तो उनका रत्न पन्ना पहन कर बुध देवता का बल बढ़ाया जाता है l

सिंह लग्न कुण्डली में शुक्र देवता के फल:

  • इस लग्न कुण्डली में शुक्र देवता तीसरे और दसम भाव के मालिक हैं l सूर्य देवता के विरोधी दल के होने के कारण वह कुण्डली के सम ग्रह बन जाते हैं l
  • पहले, चौथे , पांचवें , सातवें, नवम, दसम और एकादश भाव में शुक्र देवता अपनी दशा -अन्तरा में  अपनी क्षमता अनुसार शुभ फल देते हैं l
  • दूसरे (नीच ), तीसरे , छठें , आठवें, व द्वादश भाव में शुक्र देवता अशुभ हो जाते हैं l दान व पाठ करके शुक्र देवता की अशुभता को दूर की जाती है l
  • शुक्र देवता इस लग्न कुण्डली में किसी भी भाव में अगर अस्त अवस्था में है तो उनकी दशा-अन्तरा में कामकाज की वृद्धि के लिए उनका रत्न हीरा, ओपल पहनकर शुक्र देवता का बल बढ़ाया जाता है

सिंह लग्न कुण्डली में मंगल देवता के फल:

  • मंगल देवता इस लग्न कुण्डली में चौथे और नवम दो अच्छे भावों के स्वामी हैं l लग्नेश सूर्य के अति प्रिय मित्र होने के कारण मंगल ग्रह इस कुण्डली के योग कारक ग्रह माने जाते हैं l
  • पहले, दूसरे , चौथे , पांचवें , सातवें , नवम, दशम और एकादश भाव में मंगल देवता अपनी दशा -अन्तरा में अपनी क्षमता अनुसार शुभ फल देते हैं l
  • तीसरे, छठें, आठवें और द्वादश भाव में पड़े मंगल अशुभ हो जाते हैं l उनकी अशुभता दान पाठ  करके दूर की जाती है l
  • अस्त अवस्था में किसी भाव में स्थित मंगल का रत्न मूंगा पहनकर उनका बल बढ़ाया जाता है l

सिंह लग्न में बृहस्पति देवता के फल:

  • बृहस्पति देवता इस लग्न कुण्डली में पांचवें और आठवें भाव के स्वामी हैं l बृहस्पति देवता की मूल त्रिकोण राशि (धनु) कुण्डली के मूल त्रिकोण भाव में आती है l सूर्य देवता के मित्र होने के कारण वह अति योग कारक ग्रह माने जाते हैं l
  • पहले, दूसरे , चौथे, पांचवें, सातवें, नवम, दशम और एकादश भाव में बृहस्पति देवता अपनी दशा -अन्तर्दशा में क्षमता अनुसार शुभ फल देतें हैं l
  • तीसरे, छठे, आठवें और द्वादश भाव में उदय अवस्था में पड़े बृहस्पति देव मारक बन जातें है और  अशुभ फल देतें है परन्तु आठवां और 12वें भाव में विपरीत राज़ योग की स्थिति में आकर शुभ फल देते हैं अगर लग्नेश बलि और शुभ हो जाएँ तो l
  • छठे भाव में बृहस्पति नीच राशि में आ जाते है इसलिए वह विपरीत राज़ योग का शुभ -लाभ नहीं  देते हैं l
  • अस्त अवस्था में बृहस्पति का रत्न  पुखराज किसी भी भाव में पहना जाता है l
  • अशुभ बृहस्पति का दान करके उनकी अशुभता दूर की जाती है l

सिंह लग्न में शनि देवता के फल:

  • शनि देव इस लग्न कुण्डली में छठे और सातवें भाव के स्वामी हैं l लग्नेश सूर्य के शत्रु होने के कारण  शनि देव को कुण्डली का अति मारक ग्रह माना जाता है l
  • कुण्डली के सभी भावों में शनि देव अशुभ फल देंगे इसलिए उनकी दशा-अन्तरा में उनका पाठ और दान करके उनकी अशुभता दूर की जाती है l
  • छठे, आठवें, और 12वें भाव में शनि देव विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देने की क्षमता रखते हैं परन्तु सूर्य देव के बलि होना अति अनिवार्य है l
  • शनि देव का रत्न इस लग्न कुण्डली में नहीं पहना जाता है क्योंक वह रोगेष है l

 सिंह लग्न में चन्द्रमा देवता के फल:

  • चंद्र देव इस लग्न कुण्डली में द्वादश भाव के मालिक हैं इसलिए इस कुण्डली में चंद्र देवता अति मारक  ग्रह माने जाते हैं l
  • कुण्डली के किसी भाव में चंद्र देव अपनी दशा-अन्तरा में अशुभ फल देतें है l अपनी क्षमतानुसार  अशुभ फल देते हैं l
  • छठे, आठवें और 12वें भाव में पड़े चंद्र देवता विपरीत राज़ योग में आकर शुभ फल देने की क्षमता  रखते हैं परन्तु सूर्य देव के बलि व शुभ होना अनिवार्य है l
  • इस लग्न कुण्डली में मोती चन्द्रमा का रत्न कभी भी नहीं पहना जाता है l
  • दशा -अन्तरा में चन्द्रमा के दान और पाठ करके उनका मारकेत्व को कम किया जाता है l

सिंह लग्न कुण्डली में राहु देवता के फल:

  • राहु देव की अपनी कोई राशि नहीं होती l वह अपनी मित्र राशि और शुभ भावों में बैठकर ही शुभ  फल देते हैं l
  • दूसरे, सातवें, दशम व एकादश भाव में अपनी दशा अन्तरा में राहु देव शुभ फल देते हैं l
  • पहले, तीसरे, चौथे (नीच), पांचवें (नीच ), छठें, आठवें , नवम और द्वादस भाव में राहु देव मारक  ग्रह बनकर अशुभ फल देंगे l राहु का रत्न गोमेद कभी भी नहीं पहना जाता बल्कि इसका दान-पाठ करके इसकी अशुभता दूर की जाती है l

सिंह लग्न कुण्डली में केतु देवता के फल:

  • केतु देवता की अपनी कोई राशि नहीं होती l केतु देवता अपने मित्र राशि और शुभ भाव में बैठकर  ही शुभ फल देते हैं l
  • दूसरे, चौथे (उच्च राशि), सातवें भाव में केतु देवता अपनी दशा-अन्तरा में क्षमता अनुसार शुभ फल देतें है l
  • पहले, तीसरे, छठे, आठवें, नवम और एकादश (नीच) और द्वादश भाव में केतु देवता मारक ग्रह  बन जातें है व अशुभ फल देतें हैं l
  • केतु का रत्न लहसुनिया कभी भी नहीं पहना जाता बल्कि केतु का पाठ व दान करके उनकी  अशुभता दूर की जाती है l

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