1. ज्योतिष के मूल नियम

प्रेम विवाह के योग

कुण्डली के पंचम भाव तथा पंचम भाव के स्वामी से जातक के प्रेम सम्बन्ध को देखा जाता है l प्रेम – सम्बन्ध की स्थायी सफलता इस सम्बन्ध के विवाह – सम्बन्ध में बदलने से होती हैं l इसके लिए पंचमेश तथा सप्तमेश का कोई भी सम्बन्ध होना अति – आवश्यक है l यदि पंचमेश और …

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कुण्डली मिलान (सरल भाषा में सीखें)

बहुत सारे विद्वान केवल गुण मिलान को ही कुण्डली मिलान मान लेते हैं I जबकि गुण मिलान केवल 25% ही होता है I आम आदमी बाकि के 75% की विवेंचना करना जरुरी नहीं समझता जिसके कारण कुण्डली मिलान में अच्छे गुण मिलने के बाद भी पति-पत्नी को अलग होते देखा गया है या उनके वैवाहिक …

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कुछ विशेष बातें – ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान

हमेशा लग्न कुंडली पर ही ध्यान दिया जाना चाहिए I लग्न राशि ही ज्यादा महत्वपूर्ण होती है I कुण्डली में महादशा और अन्तर्दशा का अच्छा या बुरा प्रभाव केवल और केवल जन्म लग्न कुंडली से ही किया जाता है I कभी भी किसी जातक को रत्न धारण करने का सुझाव राशि अनुसार नहीं दिया जाता …

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ग्रहों का अंश तथा षड़बल

जिस तरह इन्सान दो पांवो पर चलता है उसी प्रकार षडबल और अंशमात्र बलाबल के अनुसार ही ग्रह अपना फल देता है l दोनों में से एक के बल में भी यदि कमी आ जाती है तो उनके फल में कमी आ जाती है l जैसे एक रेलगाड़ी दो पटरियों पर चलती है वैसे ही …

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ज्योतिष के महत्वपूर्ण सिद्धांत

योग करक ग्रह की परिभाषा : योग करक ग्रह कुण्डली में अच्छे घर का मालिक होता है l यह ग्रह जहाँ बैठता है, जहाँ देखता है और जहाँ जाता है उन घरों की वृद्धि करता है I एक योग कारक ग्रह भी मारक (शत्रु) बन सकता है I यदि योग कारक ग्रह उदय अवस्था में …

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ग्रहों की दृष्टियों का क्या महत्त्व है ?

ज्योतिष विद्या में ग्रहों की दृष्टि का अर्थ उस ग्रह का प्रभाव दूसरे भावों पर पड़ना होता है जैसे कि एक टॉर्च एक जगह पर चलती है उसकी रौशनी या किरणें दूसरी जगह पर पड़ती हैं l उसी प्रकार ग्रह अगर एक भाव में बैठा हो तो उसका असर दूसरे भावों पर भी पड़ता है …

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वक्रीय (Retrograde) तथा अस्त (Combust) गृह का क्या अर्थ है ?

सभी ग्रह अपनी चाल चलते – चलते वक्रीय होते हैं परन्तु इस बात को सदैव स्मरण रखना चाहिए कि सूर्य और चन्द्रमा कभी भी वक्रीय नहीं होते हैं l ये सदैव मार्गीय चलते हैं (इसीलिए बीता हुआ समय कभी भी वापस लौटकर नहीं आता है l) वक्रीय ग्रह का सही अर्थ : जब भी कुण्डली …

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उच्च ग्रह तथा नीच ग्रह

उच्च ग्रह : जब कोई ग्रह किसी राशि में सामान्य से अधिक अच्छे फल देने बाध्य हो जाए , तो उसे उच्च का ग्रह कहा जाता है l यदि कुण्डली में योग कारक ग्रह उच्च का होता है तो वह ग्रह सामान्य से अधिक अच्छे फल देने में बाध्य हो जाता है I यदि कुण्डली …

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ग्रहों की स्थित के अनुसार जातक का स्वभाव (लग्न का स्वभाव)

कुण्डली का प्रथम घर/भाव लग्न कहलाता है l कुण्डली के प्रथम घर (लग्न) से जातक के स्वभाव के बारे में जाना जाता है l लग्न के स्वभाव की जानकारी के लिए यह देखना अति अनिवार्य है कि लग्न भाव में कोन सा ग्रह विराजमान है लग्न भाव पर कितने ग्रहों की दृष्टि है I यदि …

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ग्रहों का विश्लेषण तथा कारक भाव

हमारे सौर्य मंडल में अनगिणत ग्रह हैं l लेकिन हमारे शरीर पर जिन 9 ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, ज्योतिष शास्त्र में उन्हीं 9 ग्रहों का अध्यन किया जाता है जो इस प्रकार हैं : सूर्य                                6.   शुक्र चन्द्रमा                            7.   शनि मंगल                              8.   राहु (छाया ग्रह) बुध                                 9.   केतु (छाया ग्रह) गुरु (बृहस्पति) ग्रहों से …

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